Three songs of Anand Bakshi Sahib I like:
‘कुछ तो लोग कहेंगे‘ सिर्फ़ एक गीत के बोल ही नहीं हैं बल्कि चार शब्दों में बयान हमारे स
माज काबहुत बड़ा और बहुत ज़रूरी सच है। आनंद बख़्शी साहिब के गानों की यही ख़ासियत
रहती है। वो अपनेगानों में मिठास बरकरार रखते हुये समाज का बड़े से बड़ा सच कह जाते हैं।
‘अमर प्रेम’ फिल्म का यहगाना अपने सच की वजह से अमर हुआ है और गाने में आये ऐतिहासिक हवाले कि ‘सीता भी यहाँ बदनामहुई’ इस कड़वे सच को और मज़बूती देते हैं। ये गीत मुझे साहिर साहिब की भी याद दिलाता है। वो’जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं’ में लिखते हैं ‘
यहाँ पीर भी आ चुके हैं जवान भी, तनोमन्द बेटे भीअब्बा मियां भी’ उसी दर्जे पर जाकर बख़्शी
साहिब लिखते हैं, हमको जो ताने देते हैं हम खोये हैं इनरंगरलियों में, हमने उनको भी छुप छुप के आते देखा इन
गलियों में।’ कुछ तो लोग कहेंगे’ गीत कभी पुराना नहीं हो सकता।
‘गाड़ी बुला रही है‘ सीधे और सरल तरीक़े से गाड़ी की नहीं बल्कि ज़िन्दगी की बात है। यहाँ भी
बख़्शीसाहिब ने बेहद बड़ा फ़लसफ़ा चार आसान लफ़्ज़ों में कह दिया है और वो है,
‘चलना ही ज़िन्दगी है।’ मुश्क़िल विचार को आसान बनाना और आसान बात को आम
लोगों की ज़ुबान पर चढ़ा देना एक हुनर हैजो अज़ीम कद गीतकार बख़्शी साहिब के
तक़रीबन हर गाने में है। इस गीत में उन्होंने खेल-खेल में कहदिया ‘सीखो सबक जवानों,
मैं इस बात को ‘एकला चलो रे’ के बरक्स रख के भी देखता हूँ। बल्कि इसमेंतो सिर्फ ‘चलना’
है और छोटी लेकिन और भी बड़ी बात।
‘यहाँ मैं अजनबी हूँ‘ बख़्शी साहिब का लिखा मेरा पसंदीदा गाना है। जिस ख़ूबसूरती से
उन्होंने इन गानेमें दो वर्गों का और दो समाजों का ज़िक्र किया है वो सब इतना
आसान नहीं था जितना इस गाने में लगताहै। भारतीय और पश्चिमी सभ्यता के बीच की
खींचा तानी, निम्न-मध्यवर्ग और उच्च वर्ग के बीच की खाई, मासूमियत और चालाकी के
बीच का अंतर, क्या नहीं है इस गाने में। और इन सब के साथ मोहब्बत मेंअधिकार
की बात, ‘तेरी बाहों में देखूँ सनम ग़ैरों की बाहें, मैं लाऊंगा कहाँ से भला ऐसी निगाहें ?’
शिकवा, शिकायत और गिले की बात। सिर्फ़ यही गाना नहीं बल्कि ‘जब जब फूल खिले’ फिल्म के सबगाने ही तराशे हुए नगीने हैं।